शिव अवतार हनुमान – शिव जी ने आखिर क्यों हनुमान जी के रूप में अवतार लिया था ?

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एक प्रश्न “शिव जी ने आखिर क्यों हनुमान जी के रूप में अवतार लिया था ?” इस प्रश्न के उत्तर में अगर आप वास्तविकता जान लेंगे तो निःसंदेह आपको अत्यन्त अचंभा होगा। एक तथ्य तो सर्व विदित है कि हनुमान जी रुद्र के ग्यारहवें अवतार माने जाते हैं। ये कहानी शुरू होती है रामायण के समय से।

रामायण में हम जब भी बात करते हैं तो श्री राम जी के साथ माता जानकी, भ्राता लक्ष्मण, वानर राज सुग्रीव और साथ साथ एक महा योद्धा का नाम हर समय हमारे सामने आता है। भक्ति, समर्पण, सेवा, ब्रह्मचर्य और महाबली जैसे गुणों के स्वामी थे वो। भगवान् राम और माता सीता के दुलारे थे वो। जो किसी परिचय के याची नहीं है। जी हां, हम बात कर रहे हैं महाबली श्री राम दूत हनुमान जी की।

हमारे समक्ष प्रश्न उठता है कि उनका जन्म कैसे हुआ। उनके जन्म के अनुसार कई बार दो दो कहानियां आती हैं और शास्त्रों में राम भक्त हनुमान की दो तिथियों का उल्लेख मिलता है। जिसमें पहला तो भगवान् शिव का अवतार माना जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि राम भक्त हनुमान की माता अंजनी ने भगवान् शिव की घोर तपस्या की थी और उन्हें पुत्र के रूप में प्राप्त करने के लिए वर मांगा था।

तब भगवान शिव ने पवन देव के रूप में अपनी रौद्र शक्ति का अंश यज्ञ कुंड के रूप में अर्पित किया था और फिर वही शक्ति अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट हुई थी। फिर चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्म हुआ था और पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण का अंत करने के लिए जब भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया उसी समय सभी देवताओं ने अलग – अलग अवतार लिए थे।

सभी अवतारों मे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है भगवान शिव का वानर का अवतार धारण करना। इस घटना की पुष्टि राम चरित मानस अगस्त्य संहिता, विनय पत्रिका और वायु पुराण में भी की गयी है। हनुमान जी के जन्म को लेकर अलग – अलग विद्वानों के मत आते हैं लेकिन कथा के अनुसार रावण का अंत करने हेतु जब भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया तब सभी देवता भी अलग – अलग रूपों में प्रकट हुए थे।

भगवान शंकर ने पूर्व में भगवान विष्णु से दास का वरदान प्राप्त किया था, जिसे पूर्ण करने के लिए वह भी अवतरित होना चाहते थे और वह हनुमान के रूप में अवतरित हुए। रामायण में ऐसा बताया गया है कि एक बार भगवान शिव की भी इच्छा हुई कि पृथ्वी लोक पर जाकर भगवान श्री राम के दर्शन किए जाए। उस समय राम जी की आयु कुछ पांच वर्ष की हो गयी थी। लेकिन, शिव अपने वास्तविक रूप में जा नहीं सकते थे तो शिव जी ने माता पार्वती से खड़े होकर अचानक से बोले, “जानती हो पार्वती, मेरे राम ने जन्म लिया है और मुझे उनके दर्शन की सेवा का मन हुआ है। मेरी इच्छा है कि अब मैं यहाँ से चला जाऊँ और राम के लोक में ही रहूँ।”

यह सुनकर कि शिव मुझे अब छोड़ कर जा रहे हैं, उनका मन व्याकुल हो उठा। माता पार्वती रोते हुए बोली, “हे स्वामी! मुझसे ऐसी कौन सी गलती हो गयी है कि आप मुझे यहां छोड़ के अकेले अयोध्या नगरी जाना चाहते हैं ? स्वामी! आप यदि जाते हैं तो जाइए लेकिन एक बात सुन लीजिए आपके बिना मै यहां नहीं रह सकती और आपके बिना मैं जीवित नहीं रहूंगी और आपके बिना मैं अपने प्राण त्याग दूँगी।”

यह सब सुनकर शिव जी को वाकई मालूम हो गया कि पार्वती भी मेरे बिना नहीं रह सकती है। और अगर मैं यहां से चला गया तो निश्चित ही पार्वती जी अपने प्राणों की बलि दे देंगी। यह सब सोच कर भगवान शिव मोह के चक्कर में फंस जाते हैं। कहते हैं कि पत्नी छल से पति को मना लेती है। यहां भी यही बात सिद्ध हो जाती है।




एक तरफ माता पार्वती थीं जिनके पास शिव जी को रहना था और दूसरी तरफ भगवान राम थे जिनके लोक में उन्हें जाना था। अपनी दास्यता को पूरा करना था। शिव जी ने पार्वती जी से कहा, “हे प्राण प्यारी उमा, मै तुम्हें कैसे त्याग सकता हूं।” तब भगवान शिव ने अपने ग्यारह रूपों का राज माता पार्वती को बताया। ग्यारह रूद्राक्ष की माला जो उनके गले में थी, ग्यारह रूप और बोले, “देखो पार्वती इन ग्यारह रुद्र में से एक रूप ग्यारहवां आज मैं अवतरित होने वाला हूं।एक रूद्राक्ष में से एक रूप आज वानर का होगा जो बाद में हनुमान के नाम से जाना जाएगा और बाकी दस रूद्राक्ष से आज मैं मदारी का रूप लेने वाला हूं।”

शास्त्र बताते हैं कि भगवान शिव को पूरी पूरी जानकारी थी कि वह राम के पूरे जीवन काल को देख पर रहे थे। उन्हें पता था कि जीवन में कम से कम एक बार राम जी को पृथ्वी का कल्याण करने के लिए मेरी आवश्यकता जरूर पड़ेगी। तब मेरा यही रूप राम की मदद करेगा। और इसलिए हनुमान अवतार में शिव अपनी जैसी शक्तियां डालते हैं।

शिव जी को यह भी पता था कि कलियुग मे मैं ना तो नजर आऊंगा ना राम नजर आएंगे। तब कोई भी अवतार जन्म लेकर धरती पर नहीं जाने वाला है और इसलिए शिव ने अपने ऐसे शक्तिशाली रूप को जन्म दिया जो कलियुग में अजर अमर रहेगा। पृथ्वी लोक पर दुख दर्द को दूर किया करेगा और इसलिए आज भी सच्चे दिल से हम हनुमान जी को सच्चे मन से याद करते हैं तो साक्षात् हम उनके सच्चे दर्शन पा लेते हैं।

इस बात के बहुत सारे सबूत मिल चुके हैं कि हनुमान जी आज भी पृथ्वी पर मौजूद हैं। नासा तक के अनुसार हनुमान जी आज भी जिंदा है। ये तो थी शिव जी के अवतार हनुमान जी की कहानी और इस प्रकार शिव ने हनुमान जी का अवतार लिया। पहले शिव ने हनुमान को श्री राम के दर्शन कराए बाद में यही शिव रूप राम का परम भक्त कहलाया और राम – रावण युद्ध में सबसे अधिक मददगार साबित हो पाया।

हनुमान जी का जीवन कितना महान है उतना ही महान उनकी लीलाओं से परिपूर्ण था उनका बालपन। वानर राज केसरी और माता अंजनी के पुत्र होने के कारण केसरी नंदन और आंजनेय के नाम से भी जाने जाते हैं। हनुमानजी को पवन पुत्र भी कहा जाता है क्योंकि माता अंजनी को वायु देव की कृपा से ही हनुमान जी प्राप्त हुए थे। हनुमान जी बचपन से ही पराक्रमी और साहसी थे। ये बात तो हम एक बात से ही जान सकते हैं जब वो सूरज को फल समझकर खाने चले थे।

सूर्य देव की रक्षा हेतु देवराज इंद्र ने उन पर वज्र का प्रहार किया था। अपने पुत्र की मूर्छित अवस्था देख कर वायु देव ने क्रोधित होकर वायु को रोक दिया था। तब सभी देवी देवताओं ने हनुमान जी को आशीर्वाद देकर उन्हें भिन्न भिन्न प्रकार की शक्तियों से सुशोभित किया था और कहा था कि यह बालक आने वाले समय में एक महान कार्य में भगवान विष्णु के अवतार श्री राम की धर्म स्थापना में मदद करेगा। उन्हें अपने जीवन के उद्देश्यों और रहस्यों को जानने की जिज्ञासा बनी रहती थी और इसी के चलते वो ऋषि, ज्ञानी, पंडितों से इसका उत्तर प्राप्त करने का प्रयास करते रहते थे लेकिन उनकी जिज्ञासा शांत न होने पर वो क्रोधित होकर के उत्पात मचा देते थे।




और एक दिन इसी जिज्ञासा वश वह भृगु ऋषि के पास जब पहुंचे और उनको क्रोधित कर दिया। हनुमान जी को श्राप देते हुए भृगु ऋषि ने कहा कि तुम अपनी सारी शक्तियां भूल जाओगे और जब कोई ज्ञानी व्यक्ति तुम्हें अपनी शक्तियों का स्मरण कराएगा तब तुम्हें वो शक्तियां मिल जाएंगी वापस। उसके बाद एक बार वानर राज सुग्रीव के पास वह पहुंचे और उनकी सेवा में लग गए।

समय बीतता गया और प्रभु श्रीराम के रूप में श्री विष्णु अवतरित हुए। आखिर वो समय आ गया जब शिव जी हनुमान रूप में राम की सेवा करने मे लग गए। जब रावण से युद्ध करने का समय आया रावण ने माता सीता का हरण कर लिया और ढूंढते ढूंढते प्रभु श्री राम हनुमान जी से मिले तो भगवान को देख कर हनुमान जी प्रसन्न हो गए और उनकी व्यथा सुन कर वो भी दुखी हो गए। तब उन्होंने श्री राम को वानर राज सुग्रीव से मिलाया और सहायता करने का वचन भी दिया।

इस तरह से शुरू हुई थी माता जानकी की खोज। चारों दिशाओं में सारे वानर मिलके उनकी खोज में निकल पड़े तब एक दिन सब लंका की ओर बड़े। समुंदर को पार करने में कोई सक्षम नहीं था। तब जामवंत जी ने हनुमान जी को याद दिलाया उनकी शक्तियों के बारे में। अपनी शक्तियों का स्मरण करते उन्होंने विराट रूप धर करके समुंदर पार माता जानकी की खोज की और भगवान श्री रामचन्द्र जी का संदेश पहुंचाया। इसी कारण हनुमान जी को श्री राम जी का अनंत भक्त कहा जाता है और इसी प्रकार शिवजी ने हनुमान के रूप में विष्णु भगवान की दासता को पूरा किया।

इस प्रकार शिव का हनुमान रूप ही जगत का पालन हार है। आज भी सच्चे दिल से जभी भी हम हनुमान जी को याद करते हैं तो हनुमान जी अपने भक्तों के पास पल भर में हाजिर हो जाते हैं। साथ ही साथ उनके जीवन की कहानी से हमें ये भी सीख लेनी चाहिए कि यदि आप अपनी क्षमता को पहचाने तो हमारे जीवन में हमारे लिए सब कुछ करना संभव है। कोई भी कार्य कठिन नहीं है। जिस तरह हनुमान जी को अपनी क्षमता पता चली तो उन्होंने समुद्र को पार किया। इस तरह अगर हम भी अगर अपने जीवन की कठिनाइयों को देख करके घबराए बिना क्षमताओं को पहचाने तो जीवन में हर किसी कठिनाई को पार कर सकते हैं।

धर्म के पथ पर अगर आप चलते हैं तो जिस प्रकार राम का हनुमान ने साथ दिया धर्म पथ पर चलने के लिए उसी तरह से ही अगर हम धर्म के मार्ग पर चलेंगे तो भगवान हनुमान जी शिवजी के रुद्र अवतार हमारी भी रक्षा जीवन भर जरूर करेंगे। अपनी अपनी क्षमताओं को पहचान लेंगे तो कोई भी कठिनाई जीवन में आगे बढ़ने से रोक नहीं पाएगी।




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