बालाजी महाराज की व्रत कथा हिंदी में

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बालाजी महाराज की व्रत कथा हिंदी में

एक बार गंगा जी के पावन तट पर विराजमान श्री सूत जी महाराज से शौनकादि ऋषियों ने निवेदन किया – “हमे किसी श्रेष्ठ व्रत का विधान बताइए।” सूत जी बोले कि – “ऋषि गण! आपने बहुत सुन्दर प्रश्न किया है।

एक बार महर्षि वेद व्यास जी ने पृथापुत्र युधिष्ठिर को अत्यंत गुप्त संपत्तियों के निधि स्वरूप तथा नष्ट राज्य की प्राप्ति कराने वाला श्री बालाजी महाराज (हनुमान जी) का व्रत कहा था।

उन्होंने बताया कि यह व्रत भगवान् श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के लिए कहा था। द्रौपदी ने हनुमान व्रत का आरंभ किया और उससे संबंधित डोरा गले में बांध लिया। किसी समय अर्जुन ने उस डोरे को बंधा देखा तो बोले, “यह व्यर्थ का डोरा क्यों बांधा है?”

द्रौपदी ने मधुर शब्दों में कहा, “श्री कृष्ण के निर्देशानुसार मै हनुमान व्रत करती हूँ, यह डोरा उसी का है।” यह सुन कर अर्जुन क्रुद्ध हो गए और बोले, “अरे! वह बंदर तो हमारे रथ की ध्वजा पर निरंतर लटका रहता है, वह तुम्हें क्या दे सकता है? कृष्ण भी तो कपटी है, उन्होंने मजाक में ऐसा कह दिया होगा। अब तुम इस डोरे को तुरंत उतार फेंको। ”

द्रौपदी को अर्जुन की बात माननी पड़ी। उसने उस डोरे को खोल कर उद्यान मे सुरक्षित रख दिया। हे युधिष्ठिर! हनुमान जी के डोरे का परित्याग ही तुम्हारी विपत्ति का कारण है। उसी के फलस्वरूप तुम्हारा प्राप्त ऐश्वर्य सहसा नष्ट हो गया है।

उस डोरे में तेरह ग्रंथियां हैं, इसलिए तुम्हें तेरह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा। यदि उस डोरे का परित्याग न किया होता तो यह तेरह वर्ष सुख पूर्वक ही व्यतीत होते। ”

जब व्यास जी यह चर्चा कर रहे थे तब द्रौपदी भी वहां मौजूद थी। उसने स्वीकार किया कि,” भगवान् श्री वेद व्यास का कथन सत्य है। ” व्यास जी पुनः बोले,” हे युधिष्ठिर! यदि तुम इस व्रत कथा को सुनना चाहते हो तो ध्यान पूर्वक सुनो। ”

जब सीता जी की खोज करते हुए भगवान् श्री राम जी अपने अनुज सहित ऋष्यमूक पर्वत पर पधारे तब उन्होंने वानर राज सुग्रीव के साथ हनुमान जी को भी देखा और तब हनुमान जी ने उनके साथ मित्रता स्थापित की और बोले,” हे महाबाहो श्री राम चन्द्र जी! मै आपका कार्य करने को आतुर हूँ तथा आपका भक्त भी हूँ। पहले इंद्र ने मेरी हनु पर वज्र से प्रहार किया था इसलिए पृथ्वी पर मैं हनुमान नाम से विख्यात हुआ।

उस समय मेरे पिता वायु, क्रोध में यह कहते हुए अन्तरध्यान हो गए कि जिसने भी मेरे पुत्र को मारा है मै उसे नष्ट कर दूंगा। इसके बाद ब्रह्मा आदि देवताओं ने प्रकट होकर कहा, हे अंजनी पुत्र। तुम्हारे लिए इस वज्र का प्रहार व्यर्थ है और तुम अमित पराक्रमी होकर अपने व्रत के नायक होकर राम कार्य को करो।

तुम्हारे इस व्रत को करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। इस व्रत का अनुष्ठान पहले श्री रामचन्द्रजी ने भी किया था। यह कहकर देवगण चले गए। अब हे नाथ! हे रामचंद्र जी! आप इस व्रत को अवश्य कीजिए। ”

हनुमान जी की बात का समर्थन आकाशवाणी ने भी किया। तब श्री राम ने हनुमान जी से व्रत का विधान पूछा। तब हनुमान जी बोले,” जब मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में तेरह घटीयुक्त त्रयोदशी एवं अभिजीत नक्षत्र हो तब पीले डोरे में तेरह गांठ लगा कर उसे कलश में रखें फिर “ओम नमो भगवते वायुनंदाय” मंत्र से मेरा आव्हान तथा पीले चंदन, पीले पुष्प और अर्चनोचित सामग्री से मेरा पूजन करें।

पूजन मे ॐकार युक्त मंत्र द्वारा षोडशोपचार करने चाहिए। गेहूं के आटे के तेरह मालपुआ, ताम्बूल एवं दक्षिणा ब्राह्मण को दे तथा भोजन भी कराए। यह व्रत तेरह वर्ष पूरे होने तक नियमपूर्वक करें तथा तेरह वर्ष बाद विधिवत् उद्यापन करें।”

इस प्रकार हनुमान जी ने कहा। यह व्रत लक्ष्मण जी, विभीषण, सुग्रीव एवं श्री रामचन्द्रजी ने भी किया था। इस व्रत का साधन करने वाले साधक की श्री हनुमान जी स्वयं सहायता करते हैं। हे युधिष्ठिर! इस मार्गशीर्ष मास में तुम भी इस व्रत को करो तो तुम्हें राज्य की पुनः प्राप्ति हो सकती है।

व्यास जी द्वारा व्रत की ऐसी महिमा सुन कर समुद्र तट पर रात्रि व्यतीत करने के पश्चात दूसरे दिन युधिष्ठिर ने व्यास जी के समक्ष ही द्रौपदी के साथ यह व्रत पायस एवं घृताक्त हवि से होम तथा “ओम नमो भगवते वायुनंदाय” (मूल मंत्र) से श्री हनुमान जी का एवं आव्हान पूजन किया।

इसके फलस्वरूप युधिष्ठिर को उसी वर्ष राज्य की पुनः प्राप्ति हो गई। इसलिए हे ऋषिगण! आप भी इस व्रत को करके सफल मनोरथ को प्राप्त कर सकते हैं। तब उन ऋषियों ने भी इस श्री हनुमान व्रत को किया।

इस हनुमान व्रत संबंधी कल्प का पाठ करने, सुनने तथा सुनाने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। यह व्रत चारो वर्णों के लिए हितकारी है क्योंकि इसके करने से ब्राह्मण वेद पारंगत, क्षत्रिय ऐश्वर्य एवं अमित पराक्रम से युक्त, वैश्य कुबेर के समान धन का स्वामी तथा शूद्र भी कृषि साधन सम्पन्न एवं अत्यंत धनी हो जाता है।

रोगी रोग मुक्त, पुत्रारथी पुत्रवान, मोक्षार्थी मुक्त तथा धनार्थी धन संपन्न होता है। सभी अंग उपांगो सहित श्री हनुमान जी का पूजन कर “ओम नमो भगवते वायुनंदाय” मंत्र से तीन बार अभिमंत्रित किए हुए चंदन को अपने मस्तक पर लगा लेने से सभी प्राणी वश में हो जाते हैं।

इस विधि से राजा भी वश में होता है तथा घर से निकलने पर विजय प्राप्त करके ही लौटता है। इसके पाठ से राज द्वार, संग्राम, सभा, व्यवहार, अग्नि, वायु आदि का भय दूर हो जाता है।

हनुमान व्रत के तेरह गांठ वाले डोरे को कंठ या दाहिनी भुजा में धारण करने से सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। चारों वर्णों के मनुष्यों, विशेषकर स्त्रियों के लिए यह व्रत संपत्ति प्रदान करता है। हे पवन पुत्र! हे भविष्य विधाता। हे अभीष्टता! हे श्री राम भक्त! आपको बारंबार नमस्कार है।

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