वर्तमान में श्राद्ध पक्ष चल रहा है। अपने पितृ यानि पितरों को मुक्ति और शांति दिलाने का समय है। ऐसे में श्री बालाजी महाराज की भक्ति भाव से की गई पूजा पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए प्रभावी मानी जाती है।
मेहंदीपुर बालाजी को मुक्ति धाम भी कहा जाता है क्योंकि यहां सभी भूत प्रेत, जिन्न, पितृ और आहूत सभी इनकी शरण पाते हैं। कहा जाता है कि यहाँ बालाजी महाराज सभी आत्माओं को शांति प्रदान करते हैं और उन्हें अपने चरणों में स्थान देते हैं।
बालाजी महाराज पितरों को मुक्ति प्रदान करने के साथ साथ मोक्ष भी प्रदान करते हैं। मुक्ति से आशय मोह और माया से मुक्ति से है। यहाँ बुरी से बुरी आत्माओं की शुद्धिकरण की क्रिया के पश्चात सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है जिसके बाद बालाजी महाराज इन्हें अपनी शरण में ले लेते हैं और अपने सेवा कार्यों में लगा लेते हैं। यह सब कुछ स्वचालित प्रक्रिया है जिसे स्वयं बालाजी महाराज ही चलाते हैं।
बताया जाता है कि जो लोग क्रिया यानि कराये हुए से पीड़ित होते हैं ऐसे पीड़ित लोगों के पितरों को बालाजी महाराज सबसे पहले मुक्त करते हैं फिर क्रिया को काटने की अवस्था आती है।
क्रिया बंधन से मुक्त हो जाने के बाद बालाजी महाराज की कृपा से सभी पितृजन शांति को प्राप्त होते हैं और अपने परिवार के सभी सदस्यों को आशीर्वाद देते हैं। परिवार की विषम परिस्थितियों में भी ये पितृ समय समय पर अपने परिवार वालों का मार्ग दर्शन करते रहते हैं। अद्भुत और अद्वितीय महिमा है बालाजी महाराज की। ये कई कई पीढ़ियों को तारने वाले माने गए हैं। निर्विवाद रूप से इनका प्रकटीकरण संकट मोचन के रूप में हुआ है।
पितृ दोष से पीड़ित परिवार में बालाजी महाराज एक मसीहा बनकर खुशी प्रदान करते हैं। इनकी पूजा सभी संकट से रक्षा तो प्रदान करती ही है साथ ही परिवार में बरक्कत, खुशहाली और ऐश्वर्य प्रदान करने वाली मानी गई है।
हिन्दू धर्म और रीति रिवाजों में पितरों को सर्व प्रथम स्थान दिया गया है । चाहे परिवार में कोई भी खुशी का पल हो या कोई अनुष्ठान आदि हो सर्व प्रथम पितरों को ही याद किया जाता है । किसी भी व्यापारिक प्रतिष्ठान में लगायी गयी पितृ जनो की फोटो देखकर यही महसूस हो जाता है कि हिन्दू धर्म में पितरों को कितना ऊंचा स्थान दिया गया है ।
पितरों को तर्पण करने की विधि भी अलग अलग प्रकार से अपनायी जाती हैं। कुछ सामर्थ्यवान लोग स्वर्ण, तो कुछ लोग रजत आदि अपने अपने पितरों के लिए दान करते हैं जबकि कुछ अपनी क्षमता के अनुसार ब्राह्मण को अपने घर आमंत्रित करके भोजन खिलाते हैं और वस्त्र इत्यादि प्रदान करते हैं । कहा जाता है कि ब्राह्मण में दैवीय अंश होते हैं जिनके द्वारा ग्रहण किया गया भोजन और दान सीधे पितरों के सूक्ष्म शरीर द्वारा ले लिया जाता है ।
बालाजी महाराज की विधि के अंतर्गत बताया गया है कि घर में पितरों के आव्हान करके भोजन और दान की प्रक्रिया से आंशिक रूप से उन्हें शांति तो अवश्य ही प्राप्त होती है लेकिन सूक्ष्म रूप में आने के बाद ये मोह में आ जाते हैं इसलिए बालाजी महाराज के भक्तगण इन्हें प्रत्यक्ष आमंत्रित ना करके बालाजी महाराज के माध्यम से इन्हें भोजन, वस्त्र और अन्य दान आदि की क्रिया करते हैं ।
इसमें पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन बालाजी महाराज को दरख्वास्त लगाकर बालाजी सरकार से प्रार्थना करते हैं कि उनकी गयी भेंट पितरों पहुंचा तक दी जाए । जिसके कारण पितरों के फिर से मोह माया मे पड़ने की संभावना ख़त्म हो जाती है और किया हुआ दान सीधे बालाजी महाराज से होता हुआ पितरों तक पहुंच जाता है।
अगर आप भी चाहते हैं कि आपके पितृ मुक्ति को प्राप्त हो तो कर लीजिए स्मरण श्री बालाजी सरकार का।
Sahi baat hai. Maine dekha hai aisa. Waha pitro ko mukti mil jati hai .jai ho balaji sarkar ki.
Jai shri balaji sarkar
Jai balaji
Maharaj
इनमे से कोई जानकारी मुझे नही थी बहुत अच्छा लगा।में भी राहु और पितृदोष साढ़े साती से पीड़ित हु।