भरोसा बालाजी पर तो मिलेगी डुबकी दया के सागर में

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भरोसा बालाजी पर तो मिलेगी डुबकी दया के सागर में।

 

कुछ सप्ताह पहले पूर्णिमा के दिन मै अपने परिवार के साथ बालाजी महाराज के दर्शनों के लिए मेहंदीपुर गया। दिन के भोजन के बाद हम मंदिर की ओर चल पड़े। हमारे आगे एक परिवार बड़ी ही नज़दीकी दूरी से उसी ओर चल रहा था।

लगभग छह या सात वर्ष का एक बच्चा अपने पिता का हाथ थामे चल रहा था। अन्य बच्चों की तरह ही जो उसकी उम्र के होंगे वह रास्ते भर ठोकर खाता गिरते पड़ते चल रहा था।

यह सब देखकर उसके पिता एक जगह रुके और उसको टोक कर बोले कि बेटा नीचे देख कर चलो। यह सब देखकर मुझे ऐसा लगा जैसे कि मानो उसने अपने पिता की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया हो।

उसकी नज़रे बस एक ही तरफ टिकी हुई मुझे महसूस हुई। बच्चे के पिता ने भी शायद इस बात पर गौर किया और बच्चे से प्रश्न किया, ‘बेटा, तुम क्या देख रहे हो ?’ उसने ठीक सामने उंगली से इशारा किया और कहा, ‘इन्हें’।

जब मैंने उसकी उंगली के इशारे की ओर देखा तो पाया कि बालाजी महाराज के मंदिर के मुख्य द्वार के सामने कुछ लोग अजीब सी स्थिति में पेशी ले रहे थे।

यही देखकर उसके पिता ने बच्चे से पूछ लिया,’ इन्हें क्यों देख रहे हो बेटा।’ जवाब देने की बजाय बच्चे ने अपने पिता से एक और प्रश्न कर दिया, ‘पापा, इन्हें क्या हुआ है ?’ पिता ने कहा, ‘बेटा, ये लोग बीमार हैं।’ बच्चे ने पूछा, ‘इन्हें कौन ठीक करेगा ?’

भरोसा बालाजी पर तो मिलेगी डुबकी दया के सागर में

बड़ी ही मुश्किल से पिता ने उत्तर दिया, ‘इन्हें, बालाजी ठीक करेंगे।’ बच्चे ने अब पूछा, ‘बालाजी क्या डॉक्टर हैं ?’ पिता ने कहा, ‘हाँ, बेटा।’ इस पर बच्चे ने जो कुछ कहा, उसे सुनकर मैं स्तब्ध रह गया। वह बोला,’ पापा, क्या हम भी बीमार हैं जो डॉक्टर के पास आये हैं ?’ साथ ही उसने अपने पिता से प्रश्नों की झड़ी लगा दी। उस बच्चे के प्रश्न भी बहुत रोचक थे।

‘ पापा, क्या बालाजी हमे भी ठीक कर देंगे ? ‘

‘ हाँ ऽ ऽ ऽ’ पिता ने कहा।

‘ क्या बालाजी के पास हम तब भी आएंगे जब हम घर पर बीमार पड़ जायेंगे या हमे बुखार आ जायेगा तब भी ? ‘

‘ नहीं।’ पिता ने कहा।

‘तो क्या बालाजी हमारे घर पर आकर हमें दवाई देंगे ?

‘ हाँ, बिल्कुल देंगे।’ पिता ने जवाब दिया। अजीबोगरीब उत्सुकता के साथ उसने अगला प्रश्न किया, ‘ पापा, अगर रात को भी जरूरत पड़ी तो भी वो आ जाएँगे ?’ हँसते हुए पिता ने कहा, ‘ हां – हां क्यों नहीं, वो तुमसे लिपट कर सोयेंगे भी।’ ये सुनते ही बच्चे का चेहरा खुशी से चमक उठा।

सारे रास्ते वो पेशी लेते लोगों को देखता रहा। फिर वे लोग जलपान ग्रहण करने के लिए एक दुकान में चले गए और बच्चा भी खाने पीने में मस्त हो गया।

मै पीछे से सारा वाक्या देख रहा था। उस बच्चे के लिए जो भी कुछ रहा हो लेकिन ये वाक्या मुझे अंदर से झिंझोड़ने लगा। मैंने कब से इस बात को भुला दिया था कि बचपन में हर चीज कैसे एक अनसुलझी सी पहेली हुआ करती थी।

आज मै ना जाने कितनी चीज़ों को अधिकारिक तौर पर ले लेता हूँ। जीवन के संबंध में हमने कई जवाब निकाल लिए हैं। हमारी पसंद नापसंद, प्रेम और घृणा ने हमें एक ठोस व्यक्तित्व या कहें कि एक ठोस छवि दे दी है।

हमने अपनी खुद की ही एक दुनिया रच रखी है। भगवान् की भव्य दुनिया से बेपरवाह अपनी इस तुच्छ सृष्टि में अमूल्य जीवन का एक – एक पल हम गंवा देते हैं, जिसका अंजाम भी देखा जा सकता है : दिशाहीन मानव, भटकती मानवता

एक अनजानी बैचेनी से वशीभूत लोग बहुत जल्दी में दिखते हैं। सुख – सुविधा, पद – प्रतिष्ठा और अपार धन – दौलत के बावजूद उनकी बेचारगी स्पष्ट रूप से नजर आती है। आखिर कहां चूक जाते हैं हम ? जरा गौर करें ।

जीवन को शानदार ढंग से जीने और तरक्की करने के बस दो ही तरीके होते हैं। या तो आपमें प्रखर बुद्धि हो या हो अस्तित्व में अडिग भरोसा श्री बालाजी महाराज पर । हम सबके पास प्रखर बुद्धि भले ही ना हो, पर अडिग भरोसे के काबिल हम जरूर हैं।

अडिग भरोसा चाहिए इनके अस्तित्व की अगाधता पर, इनके विवेक और इनकी दया और उदारता पर। इस जगत में या जीवन में जो कुछ भी भव्य है, अपूर्व है, महान है, बालाजी महाराज ही सबके स्रोत हैं।

जिनकी गोद में हर पल हमारा जीवन घटित होता है, जिसमें हम साँस लेते हैं, हमारा दिल धड़कता है, जो हमारा सबसे करीबी है – ऐसे बालाजी महाराज हमारे भरोसे के काबिल हैं। ठीक वैसा ही भरोसा, जो उस बच्चे का बालाजी महाराज पर है। अगर ये भरोसा हम इतना भी नहीं कर पाते तो फिर हम कही के नही रह जाएंगे।

इनके अस्तित्व पर भरोसा रखना जीने का एक बेहद ही शानदार और समझदार तरीका है। अगर हम हर रोज अपना कुछ समय इनकी भक्ति और भरोसे में बिताएं और अस्तित्व का निरीक्षण करें, इनकी भव्यता, विशालता और सौन्दर्य को निहारें – विशाल आसमान में तैरते हुए रूई के फाहे से बादल, नीरव रात्रि के अंधियारे आँचल पर टिमटिमाते तारों की रोशनी, भोर में नभ से बरसती सुनहरी किरणों में नहाई चटकती कलियां, चहचहाते पक्षी, मदिर बयार के झोंके, सुबह का उगता सूरज – तो हमारे भीतर इनके प्रति प्रेम पनपना स्वाभाविक है।

हम अपना हर पल, हर साँस, हर कदम इस भरोसे में बढ़ाएं। तब हमारी तुच्छ सृष्टि का विस्तार भव्य सृष्टि में होता है और हमारी क्षुद्र बुद्धि उस भव्य बुद्धि का ही हिस्सा बन जाती है। तब जीवन में जो भी घटता है वह सुन्दर ही होता है। अस्तित्व के आभार और बालाजी महाराज के प्रेम में गुजरता जीवन सरल और सहज हो जाता है।

॥ जय श्री बालाजी महाराज ॥

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