Chitrakoot Dham Hanuman Dhara Ki Mahima In Hindi – चित्रकूट धाम हनुमान धारा

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Chitrakoot dham का भारत वर्ष में बड़ा ही आध्यात्मिक महत्व है। बुंदेलखण्ड क्षेत्र के इस सुन्दर एवं पवित्र भाग के संग अनेक प्रकार की धार्मिक तथा पौराणिक गाथायें देश भर में प्रचलित है। इनमें से प्रमुख हैं बाल्मीकि रचित रामायणका । रामायण अनुसार भगवान राम को जब अपने पिता दशरथ द्वारा माता कैकयी को दिए गए दो वचनों को निभाने के लिए राजपाठ त्याग कर चौदह वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा तो उन्होंने अपने चरणों से इसी चित्रकूट पर्वत को भी पवित्रता प्रदान की।

भगवान राम ने माता सीता तथा भ्राता लक्ष्मण संग वनवास के अपने चौदह वर्ष से ग्यारह वर्ष से अधिक का समय चित्रकूट पर्वत के इस मनोरम क्षेत्र में ही व्यतीत किया था। प्रभु रामचंद्र के चरण स्पर्श से chitrakoot dham का संपूर्ण क्षेत्र भारतीय 6जनमानस के लिए एक तीर्थ स्थान के समान महत्व रखता है। कहते हैं कि चित्रकूट धाम मे ही भगवान श्रीराम ने तुलसीदास जी को दर्शन दिए थे।

भगवान राम के वनवासी जीवन से संबंधित अनेक पवित्र स्थल chitrakoot dham के इस वन सम्पदा पूर्ण पर्वत पर विद्यमान है। इन्हीं में से एक है हनुमान धारा (Hanuman Dhara)। यह प्राचीन एवं पवित्र स्थल chitrakoot के संकर्षण पर्वत पर विद्यमान है। हनुमान धारा नाम से आज भी यहां दो मंदिर हैं। इनमें से एक दाहिनी ओर और दूसरा बायीं ओर एक ही पर्वत पर स्थित है। दोनों का संबंध पवन पुत्र हनुमान जी के जीवन से ही है।

पर्वत के मध्य में दूर से दृष्टिगोचर होते श्वेत भवन हनुमान धारा के ही हैं। एक अधिक ऊंचाई पर स्थित है और दूसरा उसके अपेक्षा कम ऊंचाई पर बना हुआ है। किन्तु दोनों मंदिरों तक पहुंचने के लिए भक्तों को सारा मार्ग पैदल ही चलना होता है। और वो भी सारी की सारी चढ़ाई ही है। कहा जाता है कि कभी यहां केवल एक पगडंडी ही हुआ करती थी। कालांतर में मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 500 सीढ़ियों का निर्माण किया गया। किन्तु दर्शनीय बात यह है कि पगडंडी हो या सीढ़ियां भक्त का उत्साह सदैव एक समान रहा है।

आज भी भक्त सीढ़ियां चढ़ते हुए जय श्रीराम और जय राम भक्त हनुमान का उद्घोष करते हुए आगे बढ़ते हुए चलते जाते हैं। सीढ़ियां चढ़ते हुए यहां आयु का कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता। बच्चे, बुढ़े, जवान सभी अपने हृदय में आस्था और आँखों में प्रभु दर्शन के आस लिए उत्साह के संग सीढ़ियां चढ़ते जाते हैं। मंदिर पहुंचने पर भी यह उत्साह कम नहीं होता।

हनुमान धारा विन्ध्याचल पर्वत पर स्थित है। वहां यह धारा अनवरत चल रही है। यहां कि कथा इस प्रकार है कि जब हनुमान जी महाराज ने लंका जलाई थी उसी समय उनके शरीर में अग्नि का तेज था जो कि शांत नहीं हो रहा था। उस अग्नि के तेज को शांत करने के लिए जब यह देखा कि भगवान नित्य निवास कहां करते हैं तो भगवान ने कहा था कि मैं chitrakoot में हर काल में और हर समय में रहता हूं और वहीं मेरा वास रहता है एवं वहीं मैं भजन करता हूं। तो हनुमान जी ने कहा कि मैं भी अनंत काल तक और दीर्घ समय तक वहीं रहना चाहता हूं जहां भगवान श्री राम हर समय हर काल में रहते हैं। हनुमान जी महाराज ने chitrakoot dham को चुना और हनुमान धारा पर स्थित होकर वहीं पर विराजमान हो गए। तभी से जल की हनुमान धारा अग्नि के तेज को शांत करने के लिए हनुमान जी के ऊपर अनवरत बह रही है।

इस दृश्य का अनुभव आज भी प्रत्यक्ष रूप से किया जा सकता है। हनुमान धारा के इस मंदिर में हनुमान जी की सिन्दूर से लीपी पंचमुखी प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर में लड्डू और नारियल का प्रसाद प्रभु चरणों में अर्पित किया जाता है। विशेष रूप से वनवास में व्यतीत किए गए भगवान राम से संबंधित जीवन की अनेक प्रतिमाएं मंदिर परिसर में स्थापित की गयी हैं।

इस मंदिर के बाहरी प्रवेश द्वार से ही एक मार्ग दूसरे हनुमान धारा मंदिर की ओर चला जाता है। आरम्भ में यह मार्ग समतल है। लगभग 10-15 मीटर के समतल मार्ग को पार करने के उपरांत फिर चढ़ाई शुरू हो जाती है। पक्की सीढ़ियों से निर्मित यह मार्ग मंदिर के प्रवेश द्वार तक चला जाता है। प्राचीन हनुमान धारा मंदिर का प्रवेश द्वार किसी दुर्ग के प्रवेश द्वार की भांति निर्मित है। ये द्वार अपेक्षाकृत चौड़ाई में छोटा है।

भीतर पहुंचने पर सामने ही प्राचीन मंदिर स्थापित है इसके निकट ही एक छोटी सी जल धारा पर्वतीय शिला से निकल कर धरती पर गिरती है। मुख्य मंदिर में प्रवेश से पहले श्रद्धालु इस जल धारा से मुँह हाथ धोते है। इससे एक तो स्वच्छता हो जाती है और यहां का शीतल जल सारी थकान समाप्त कर देता है। इस मंदिर में भी सिंदूर लीपित राम भक्त हनुमान की प्रतिमा विद्यमान है।




धरती पर निद्रा अवस्था में स्थापित इस प्रतिमा के ठीक पीछे पहाड़ी से गिरती एक जल की धारा है। जल की यह धारा केवल इसी स्थान पर दृष्टिगोचर होती है उसके उपरांत यह अदृष्य हो गयी है। इस मंदिर में श्रद्धालु इस जल धारा और हनुमान जी की प्रतिमा के दर्शन हेतु यहां आते हैं। यहाँ पर दर्शन हेतु आने वाले भक्तों को गदा से आशीर्वाद दिया जाता है।

मन्दिर में तथा मंदिर के परिसर व परिक्रमा मे भगवान राम तथा हनुमान की लीलाओं से संबंधित अनेक प्रतिमाएं स्थापित हैं। इससे संबंधित घटना का विशेष वर्णन रामायण में स्पष्ट रूप से किया गया है। कथा के अनुसार जब हनुमान जी लंका दहन कर प्रभु राम के पास लौटे तो अग्नि के कारण उनका पूरा शरीर तप रहा था। तब उन्हें इस कष्ट से मुक्ति दिलाने के लिए प्रभु राम ने अपने बाण से पर्वत को चीर कर इस जल धारा को प्रकट किया।

उन्होंने हनुमान जी से कहा कि वो इस धारा के नीचे बैठकर अपने शरीर की अग्नि को शांत करे। ये जल धारा प्रभु श्रीराम की आज्ञा से ही यहां प्रकट हुई थी। इस कारण लोग यहाँ पर प्रभु राम, वीर हनुमान के संग इस जल धारा के भी दर्शन कर अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं। Chitrakoot dham परिक्रमा की यात्रा और प्रभु राम से संबंधित पवित्र स्थलों के दर्शनों के लिए आने वाले लगभग सभी श्रद्धालु हनुमान धारा के दर्शन करने अवश्य आते हैं।

हनुमान धारा से कुछ और ऊपर इसी पर्वत पर सीता रसोई है। हनुमान धारा के प्रवेश द्वार से ऊपर की ओर जाने वाली सीढ़ियां सीता रसोई तक ले जाती हैं। chorakoot अपने आप में एक विशाल तीर्थ स्थान है।भगवान राम ने अपने वनवास काल का अधिकांश समय इसी चित्रकूट पर्वत पर बिताया। इस अवधि में उन्होंने जहां जहां भी अपने चरण रखे वो स्थल उनके भक्तों के लिए तीर्थ स्थान बन गया।

कहा जाता है कि वनवास काल में सीता माता इसी स्थान पर भोजन तैयार करती थी। पर्वत के संग एक छोटी सी गुफा के रूप में एक कक्ष विद्यमान है जिसे सीता माता की रसोई कहा जाता है। इस स्थान को देखकर प्रतीत होता है कि कालांतर में भक्तों द्वारा यहां पर सीमेंट से एक चूल्हे का तथा चकले-बेलन का निर्माण किया गया है। यहीं पर उन पांच मुनियों की प्रतिमाएं स्थापित है जिन्हें इसी रसोई मे तैयार कर माता सीता ने भोजन करवाया था।

इसके अतिरिक्त यहां तक और भी प्रतिमाएं विद्यमान है। इस स्थान पर बहुत अधिक संख्या में लंगूर दिखाई देते हैं। श्रद्धालु इन्हें बड़े ही भक्ति भाव से चने आदि अपने हाथों से खिलाते है। chitrakoot dham एक विशाल क्षेत्र है और यहां पर अनेक ऐसे स्थान विद्यमान है जिनका संबंध किसी न किसी रूप में प्रभु राम के वनवास काल से रहा है। ऐसा ही एक और तीर्थ स्थल है जो चारो ओर राम घाट के नाम से प्रसिद्द है।

ये पवित्र स्थान वास्तव मे नदी का घाट है। नदी के दोनों ओर अनेक मंदिर तथा अन्य धार्मिक स्थान विद्यमान है। इन सभी मंदिरों तथा धार्मिक स्थलों पर हर समय रामायण पाठ चलता रहता है। इस नदी को यहां पर पैसूनी गंगा कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इस नदी के तट पर भगवान राम ने स्नान किया था तभी इस स्थान का नाम राम घाट पड़ गया था।




कहते हैं कि ब्रह्मा ने यहां पर स्वयं इस स्थान पर भगवान शिव की स्थापना क्षेत्रपाल के रूप में की थी। भगवान राम इस बात को जानते थे इसलिए भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण संग जब वनवास के लिए यहां पहुंचे तब उन्होंने यहां निवास की आज्ञा लेने लक्ष्मण को उस स्थानीय राजा के पास भेजा। राजा उस समय प्रभु वन्दना में लीन थे। उन्होंने सांकेतिक भाषा में उत्तर दिया।

लक्ष्मण उस संकेत को न समझ पाये और अपने स्वभावानुसार क्रोधित होकर लौट आए। जब उन्होंने भ्राता राम को सारा व्रतांत बताया तो भगवान् राम सारी बात समझ गए और कहा राजा ने सहर्ष यहां पर हमारे निवास के निर्णय का स्वागत किया है। यहां निवास करने से पहले प्रभु राम ने मतेन्दनाथ स्वामी की अपने कर कमलों से विधिवत पूजा की। यहीं पर भगवान भोले शंकर को समर्पित एक भव्य मंदिर विद्यमान है। इसे मतेन्दनाथ स्वामी जी का मंदिर कहा जाता है।

ये मंदिर एक बड़े ही भव्य एवं विशाल परिसर में निर्मित है। मंदिर के भीतर गर्भ गृह में अनेक शिवलिंग स्थापित है। ये शिवलिंग ऊपर से थोड़े समतल है। भक्त जन यहां नदी का जल अर्पण कर भगवान शंकर का पूरी आस्था से वंदन करते हैं। जब भगवान् श्रीराम chitrakoot dham में पधारे तो सबसे पहले बाल्मीकि आश्रम में बाल्मीकि जी से उनकी भेंट हुई।

बाल्मीकि जी ने chitrakoot जैसा पवित्र तीर्थ स्थल भगवान् राम को बताया। भगवान् राम ने जिज्ञासु बनकर पूछा कि मैं कहां निवास करूं तो बाल्मीकि जी ने चौदह स्थान बताये फिर कहा आप तो सर्वत्र है लेकिन नर लीला कर रहे हैं। इसीलिए सबसे पुनीत अगर कोई पवित्र तीर्थ स्थल है तो वो chitrakoot dham है।

भगवान् राम chitrakoot dham में पधारे तो उसी समय मंदाकिनी गंगा जो कि chitrakoot dham की पुनीत और प्राचीन नदी है। जो स्वयं माँ गंगा है, स्वर्ग वाहिनी गंगा है। जब सती अनुसूया ने यही पर तप किया था और यहां अकाल पड़ गया था साथ ही बिन जल से जीव जंतु त्राहि त्राहि कर रहे थे तो उनके तप के बल से गंगा जी यहां प्रकट हुई। यह गंगा अविरल गति से आज भी यहां बह रही है। भगवान राम ने इसी गंगा नदी में स्नान किया जिस कारण से इस स्थान का नाम राम घाट ही हो गया।

इस घाट के उपर भगवान शंकर निवास कर रहे थे। जिनका नाम है मत गजेंद्र नाथ जो कि यहाँ के महाधिराज हैं। पूर्व से ही उनकी स्थापना ब्रह्मा जी ने की थी। स्कंद पुराण में इसका वर्णन है। ब्रह्मा जी ने चित्रकूट मे विशाल यज्ञ किया था और भगवान् शंकर की स्थापना की थी। तबसे भगवान शंकर उस घाट पर तपस्या कर रहे हैं और वहां रह रहे हैं। श्रीराम जी ने शंकर भगवान जी से आज्ञा ले करके उन्होंने मंदाकिनी जी में स्नान किया और शिव पर जल चढ़ाया। तदुपरांत कामदगिरी पर्वत पर निवास के लिए यहां आये।

मत गजेन्द्र नाथ स्वामी मंदिर के भीतर उसकी परिक्रमा तथा उसके पूरे परिसर में पाषाण निर्मित अनेक प्रतिमाएं विद्यमान हैं। ये प्रतिमाएं भगवान राम, माता सीता, भ्राता लक्ष्मण के अतिरिक्त भगवान शिव तथा अनेक ऋषि मुनियों के जीवन से संबंधित हैं। सभी मूर्तियों पर स्थानीय मूर्ति कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

अनेक भक्त मंदिरों में दर्शन से पहले नदी मे स्नान करना आवश्यक समझते हैं। इसी तरह कई परिवार सपरिवार नौकाओं में बैठ नदी के दोनों तट पर विद्यमान धार्मिक स्थलों का अवलोकन करते हैं। रात के समय भी अनेक परिवार नौका विहार करके यहां की आध्यात्मिकता का रसास्वादन करते हैं। रात के समय नौकाओं में बिजली के छोटे-छोटे बल्बों से आकर्षणीय सज्जा की होती है। सुसज्जित नौका रात के समय तैरती हुई बड़ा ही मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करती है।




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