शाकाहारी या मांसाहारी कौन सा बेहतर है ? शाकाहार या मांसाहार – एक विश्लेषण।

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शाकाहारी या मांसाहारी कौन सा बेहतर है? आपने अक्सर शाकाहारियों और मांसाहारीयों के बीच होनी वाली बहस जरूर सुनी होगी। मांसाहारी कई बार शाकाहारियों को घास-फूस खाने वाला बताते हैं जबकि शाकाहारी लोग मांसाहार करने वालों को जानवरों पर अत्याचार करने वाला कहते हैं। वैसे दुनिया के ज्यादातर देशों के लोगो को अपनी मर्जी से भोजन करने की स्वतंत्रता है। लेकिन, इनमें से मांसाहार यानि नॉन वेज फूड खाने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है।

फ्रेंड्स ऑफ अर्थ नामक संस्था के मुताबिक दुनिया भर में सिर्फ पचास करोड़ लोग ऐसे हैं जो पूरी तरह से शाकाहारी हैं यानि वेजिटेरियन्स हैं। यानि 740 करोड़ की दुनिया वाली आबादी में आप शाकाहारियों को अल्प संख्यक भी कहते हैं। फ्रेंड्स ऑफ अर्थ संस्था ने 2014 में एक मीट एटलस जारी किया था जिसमें दुनिया में सबसे ज्यादा शाकाहारी लोग भारत में रहते हैं।

भारत की 31 प्रतिशत जनसंख्या शाकाहारी है। भारत में भी हर व्यक्ति को अपना भोजन चुनने की आजादी है और हम इस आजादी का पूरा समर्थन करते हैं। लेकिन, अमेरिका के नेशनल अकैडमी ऑफ साईंसेज के एक नए रिसर्च के मुताबिक अगर दुनिया में अगर शाकाहार को बढ़ावा मिले तो धरती को ज्यादा स्वस्थ, ज्यादा ठंडा और ज्यादा दौलतमंद बनाया जा सकता है।

फिलहाल दुनिया में तीन तरह का भोजन करने वाले लोग हैं। पहले जो मांसाहार करते हैं यानि जो नॉन वेजिटेरियन्स है। दूसरे जो शाकाहारी है यानि वेजिटेरियन्स हैं और तीसरे जो शाकाहारी है जो जानवरों से प्राप्त प्रोडक्ट्स दूध का सेवन का सेवन भी नहीं करते ऐसे लोगों को वीगन कहा जाता है।

शाकाहारी या मांसाहारी कौन सा बेहतर है ?

अमेरिका की नेशनल अकैडमी ऑफ साईंसेज की स्टडी के मुताबिक अगर शाकाहार को भोजन में ज्यादा जगह दी जाये तो दुनिया में होने वाली हर साल 50 लाख मौतों को टाला जा सकता है और अगर लोग दूध और दूध से बनने वाले पदार्थो का सेवन भी बंद कर दें तो करीब 80 लाख लोगों को मरने से बचाया जा सकता है। हालाँकि, ऐसा करना काफी मुश्किल काम है।

भोजन में मांसाहार की मात्रा कम करने से दुनिया में करीब 66 लाख 73 हजार करोड़ रुपये बचाए जा सकते हैं। जबकि ग्रीस हाउस गैसेज मिशन में कमी आने से 33 लाख 36 हजार करोड़ रुपये की होगी। रिसर्च के मुताबिक इस पहल से सबसे ज्यादा फायदा विकासशील देशों को होगा। स्टडी के मुताबिक कम कैलोरी वाला भोजन करने से मोटापे की समस्या कम होगी और लैटिन अमेरिका सहित पश्चिमी देशों पर पब्लिक हेल्थ पर होने वाले खर्च मे कमी आएगी।

फल और सब्जियों का उत्पादन बढ़ने से भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों को जबरदस्त फायदा होगा। लेकिन, ये सब कुछ इतना आसान भी नहीं है क्योंकि ऐसा करने के लिए फल और सब्जियों के सेवन में 25 प्रतिशत का इजाफा करना होगा जबकि रेड मीट के सेवन में 56 प्रतिशत की गिरावट लानी होगी। यानि दुनिया के हर इंसान को 15 प्रतिशत कम कैलोरीज लेनी होगी।

इसका मतलब ये हुआ कि अगर आप एक दिन में 2000 कैलोरीज वाला भोजन करते हैं तो आपको 1700 कैलोरीज तक का भोजन करके रुक जाना होगा। मांसाहार आपकी सेहत के लिए कुछ हद तक फायदेमंद हो सकता है लेकिन धरती की सेहत के लिए मांसाहार बिल्कुल भी फायदेमंद नहीं है। और हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मीट प्रॉडक्ट्स के उत्पादन के दौरान जो उत्सर्जन होता है वो दुनिया में होने वाले कुल उत्सर्जन का 20 प्रतिशत है।

ये दुनिया भर के वाहन, हवाई जहाज, ट्रेन्स और परिवहन के दूसरे साधनों से होने वाले कुल उत्सर्जन से भी ज्यादा है। एक अनुमान के मुताबिक जानवरों को पालने के लिए जो भोजन दिया जाता है अगर वो इंसानों को मिलने लगे तो दुगने लोगों का पेट भर सकता है। 1 किलो पोर्क के उत्पादन के लिए करीब 8 किलो भोजन जानवरों को दिया जाता है जबकि 1 किलो चिकन तैयार करने के लिए मुर्गे को साढ़े तीन किलो अनाज खिलाना पड़ता है।

इसी तरह मीट प्रोडक्ट्स को खाने की टेबल तक पहुंचाने में सब्जियों के मुकाबले 100 गुना ज्यादा पानी का इस्तेमाल किया जाता है। आधा किलो आलू उगाने मे 127 लीटर पानी लगता है जबकि आधा किलो मांस का उत्पादन करने के लिए 9000 लीटर से ज्यादा पानी बर्बाद होता है जबकि आधा किलो गेहूं का आटा बनाने में 681 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है।

एक किलो मांस के उत्पादन से जो उत्सर्जन होता है वो तीन घंटे तक कार चलाने वाले उत्सर्जन के बराबर है। मीट प्रोडक्ट्स के उत्पादन के लिए जानवरों को बड़ी संख्या में पाला जाता है और इसके लिए ढेर सारा अनाज, जगह और पानी की जरूरत होती है।

फ्रेंड्स ऑफ अर्थ नामक संस्था के मुताबिक मीट प्रॉडक्ट्स के उत्पादन के लिए हर साल करीब 6 लाख हेक्टेयर जंगल काट दिए जाते हैं ताकि उस जमीन पर जानवरों को पाला जा सके। ये जमीन यूरोप के देश बेल्जियम से दुगने आकार की है। 400 ग्राम मांस के उत्पादन के दौरान करीब 40 किलो ऐसे पदार्थ पैदा होते हैं जो ग्राउंड वॉटर को विषैला बनाते हैं।

दुनिया में उपलब्ध 70 प्रतिशत फ्रेश वाटर कृषि मे इस्तेमाल होता है और इसमें से एक बहुत बड़ा हिस्सा मीट उत्पादन में होने वाले पशु पालन पर खर्च होता है। अगर लोग खाने में शाकाहार को ज्यादा जगह देने लगेंगे तो जानवरों को पालने में इस्तेमाल हो रही 160 करोड़ हैक्टेयर जमीन मुक्त हो जाएगी। ये भारत के कुल क्षेत्रफल से भी दुगनी जमीन है।

एक अमेरिकी साल भर में औसतन 122 किलो मीट प्रोडक्ट्स खा जाता है। वेजिटेरियन्स सोसाइटी नामक एक संस्था के मुताबिक ब्रिटेन में मांसाहार का सेवन करने वाला हर व्यक्ति अपने जीवन काल में औसतन 11 हजार जानवर खा जाता है। इसमें 28 बत्तख, 1 खरगोश, 4 बड़े जानवर, 39 टर्की, 1158 चिकन, 3593 शैल फिश और 6182 मछलियां शामिल हैं।

शाकाहारी या मांसाहारी कौन सा बेहतर है ?

कुल मिलाकर अगर वैज्ञानिक रिपोर्ट्स को आधार बनाया जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि हफ्ते में सिर्फ एक दिन को शाकाहार अपनाकर भी धरती को बचाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा सकता है क्योंकि मांसाहार कम होने से ग्लोबल वार्मिंग में कमी आएगी और धरती का वातावरण ठंडा बनाने मे मदद मिलेगी।

उम्मीद है कि हमारे इस विश्लेषण ने आपकी आंखे खोल दी होंगी और अब आपको हरी सब्जियां और फल अच्छे दिखाई दे रहे होंगे। हालाँकि हम यहां यह बात जरूर कहेंगे कि आपको किस तरह का भोजन करना है यह फैसला लेने का अधिकार सिर्फ आपका है और हम आपके इस फैसले का पूरा सम्मान करते हैं।




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1 COMMENT

  1. बिल्कुल सही कहा आपने क्योंकि भगवद्गीता में भी कहा गया है कि मांसाहार तामसी भोजन है इसे खाने से जीवन में रोग,शोक, दुख, और भय की वृद्धि होती है।

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