बालाजी महाराज का भोग और अज्ञारी
आपने बालाजी महाराज का छप्पन (56) भोग जरूर सुना होगा। मेहंदीपुर बालाजी धाम में बाबा को प्रतिदिन 56 प्रकार के प्रसाद का भोग लगाया जाता है।
आज हम इस पोस्ट के माध्यम से आपको बताएंगे कि अपने घर में बालाजी महाराज को भोग कैसे लगाते हैं। एक निश्चित प्रक्रिया से बालाजी महाराज को भोग लगाने से भोग का अंश सीधे बालाजी महाराज तक पहुँच जाता है और साथ ही आपके लगाए हुए भोग को ग्रहण करने बालाजी महाराज की शक्तियाँ सीधे आपके घर के द्वार तक आती हैं।
जिससे आपका बालाजी महाराज को लगाया हुआ भोग सार्थक हो जाता है और आपको श्री बालाजी महाराज के अमृत तुल्य भोग का प्रसाद प्राप्त होता है।
बालाजी महाराज का भोग और इनकी अज्ञारी
इस शीर्षक को हम चार चरणों में बाँटेंगे और इनके बारे में जानेंगे ।
- मेहंदीपुर श्री बालाजी महाराज का भोग क्या है ?
- बालाजी महाराज की अज्ञारी क्या होती है ?
- बालाजी महाराज को भोग कैसे लगाया जाता है ?
- बालाजी महाराज की भोग विधि अज्ञारी द्वारा ।
बालाजी महाराज का भोग और अज्ञारी – बालाजी महाराज का भोग क्या है ?
गीता में भगवान् श्रीकृष्ण जी ने कहा है कि जो कोई भी भक्त मुझे फल, पुष्प, पत्र और जल निःस्वार्थ भाव से और प्रेम पूर्वक अर्पित करता है, उसे मैं उसी भाव से स्वीकार करता हूँ ।
भोग एक प्रकार का प्रसाद है जिसे हम ग्रहण करने से पहले हम अपने श्री आराध्य को अर्पित करते हैं । भोग के द्वारा हम अपनी भाव भंगिमा को अपने इष्ट को समर्पित करते हैं।
देवी देवताओं को हिन्दू धर्म में भोग लगाने की प्रथा युगों युगों से चली आ रही है । हिन्दू सनातन धर्म में भोग सात्विक खाद्य पदार्थों का ही लगा सकते हैं । तामसिक यानि ऐसी चीज़े जिनसे बदबू आती हो उसका भोग लगाना वर्जित बताया गया है जैसे प्याज़ – लहसुन, मांस मदिरा का भोग वर्जित है ।
हालांकि, तंत्र शास्त्रों में इनका प्रयोग किया जाता है लेकिन इसे भोग की संज्ञा नहीं दी जाती । किसी भी क्रिया जो सकाम हो जैसे मारन उच्चाटन मे मांस मदिरा का प्रयोग किया जाता है ।
बालाजी महाराज यानि हनुमान जी पूर्ण रूप से शाकाहारी है इसलिए इन्हें पूरी तरह से सात्विक पदार्थों का ही भोग लगाया जाना चाहिए ।
बालाजी महाराज का भोग और अज्ञारी – बालाजी महाराज को भोग क्यों लगाना चाहिए ?
भोग लगाने का वर्णन श्रीकृष्ण जी ने गीता में किया है । जिसमें उन्होंने कहा है कि भगवान् को भोग लगाने से भक्ति सार्थक रूप से प्रतिबिंबित होती है।
बालाजी महाराज हमारे पूज्य एवं आराध्य हैं। इनकी भक्ति से भव सागर तर जाना हमारा एक मात्र स्वार्थ है । भोग लगाना इनको निरंतर प्रसन्न करने का एक माध्यम भर ही है ।
भोग लगाने का एक दूसरा कारण अपने से बड़ों को सम्मान देना भी है । जिस प्रकार से हम अपने घर परिवार में अपने से बड़ों को भोजन, अपने से पहले करने के लिए पूछते हैं और उन्हें सम्मान देकर अपनी कृतज्ञता दर्शाते हैं उसी प्रकार भोग लगाकर हम बालाजी महाराज को सम्मान देते हैं और स्वयं खाने से पूर्व उन्हें भोग द्वारा अर्पित करते हैं।
बालाजी महाराज का भोग और अज्ञारी – छप्पन भोग क्या है ?
हिन्दू लोग भगवान को छप्पनभोग का प्रसाद चढ़ाते हैं। इनमे निम्नलिखित भोग आते हैं:
- रसगुल्ला
- चन्द्रकला
- रबड़ी
- शूली
- दधी
- भात
- दाल
- चटनी
- कढ़ी
- साग-कढ़ी
- मठरी
- बड़ा
- कोणिका
- पूरी
- खजरा
- अवलेह
- वाटी
- सिखरिणी
- मुरब्बा
- मधुर
- कषाय
- तिक्त
- कटु पदार्थ
- अम्ल {खट्टा पदार्थ}
- शक्करपारा
- घेवर
- चिला
- मालपुआ
- जलेबी
- मेसूब
- पापड़
- सीरा
- मोहनथाल
- लौंगपूरी
- खुरमा
- गेहूं दलिया
- पारिखा
- सौंफ़लघा
- लड़्ड़ू
- दुधीरुप
- खीर
- घी
- मक्खन
- मलाई
- शाक
- शहद
- मोहनभोग
- अचार
- सूबत
- मंड़का
- फल
- लस्सी
- मठ्ठा
- पान
- सुपारी
- इलायची
बालाजी महाराज का भोग और अज्ञारी – छप्पन भोग के पीछे का विज्ञान
रस 6 प्रकार के होते है।
- कटु
- तिक्त
- कषाय
- अम्ल
- लवण
- मधुर
इन छ: रसों के मेल से रसोइया कितने वयंजन बना सकता है?
अब एक एक रस से यानि
से कोई व्यंजन नहीं बनता है। ऐसे ही छ: के छ: रस यानी
मिला कर भी कोई व्यंजन नहीं बनता है।
= 6 और
= 1
63 – (6+1) = 63 -7 = 56
इसीलिए 56 भोग का मतलब है सारी तरह का खाना जो हम भगवान को अर्पित करते है।
Source : wikipedia
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बालाजी महाराज का भोग और अज्ञारी – बालाजी महाराज की अज्ञारी क्या होती है ?
हमारे धार्मिक पुराणों में ऐसा उल्लेख है कि अग्नि यानि आग के द्वारा लगाया गया भोग सीधे रूप से देवताओं तक पहुँचता है। इसलिए, अग्नि का भोग में निर्दिष्ट योगदान रहता है।
बालाजी की अज्ञारी दो रूपों में की जाती है।
- दूत महाराज की अज्ञारी
- बालाजी के भोग की अज्ञारी
बालाजी महाराज का भोग और अज्ञारी – दूत महाराज की अज्ञारी :-
जो लोग मेहंदीपुर बालाजी भूत प्रेत, संकट इत्यादि के निवारण के लिए जाते हैं और उनकी परेशानी यानि उनके संकट कट जाने के बाद उन्हे दूत महाराज मिलते हैं। ऐसे लोग हर मंगलवार और शनिवार के दिन बालाजी महाराज की छवि के समक्ष अज्ञारी द्वारा अपने दूत महाराज को भोग लगाया करते हैं।
बालाजी महाराज का भोग और अज्ञारी – बालाजी के भोग की अज्ञारी
इस रीति के अंतर्गत भक्त बालाजी महाराज को अज्ञारी द्वारा अपना बनाया गया भोग उन्हे समर्पित करते हैं। जो भक्त मेहंदीपुर बालाजी मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं उन्होनें ये अवश्य देखा होगा कि वहाँ बाबा की प्रतिमा के सामने एक बड़े से पीतल के कुंड मे एक अग्नि प्रज्वलित रहती है जिसमें, पुजारी भक्तों द्वारा लायी गयी अर्जी और दरख्वास्त के लड्डू डाल दिया करते हैं। जिससे आपके द्वारा लाये गये लड्डुओं का भोग लग जाता है।
ऐसी ही कुछ व्यवस्था भक्त लोग अपने घरों में करते हैं जिसे अज्ञारी कहा जाता है।
बालाजी महाराज का भोग और अज्ञारी – बालाजी महाराज की भोग विधि अज्ञारी द्वारा
बालाजी महाराज की अज्ञारी के लिए निम्न वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है।
- तांबे या पीतल का पात्र
- तीन छोटे बताशे
- तीन लौंग के जोड़े
- तीन चम्मच देसी घी
- एक गाय के गोबर का कंडा या उपला
- जल
बालाजी महाराज का भोग और अज्ञारी – भोग विधि
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- सबसे पहले नहा धोकर स्वच्छ धोती कुर्ता या कुर्ता पजामा पहन ले।
- ज़मीन पर साफ आसन बिछा लें।
- गोबर का कंडा जब तक आग में दहला लें जब तक कि वो धुआँ छोड़ना बंद ना कर दे यानि कि उपला लाल दहकता हुआ ना हो जाये।
- अब बालाजी महाराज की प्रतिमा या छवि के सन्मुख धूप दीप प्रज्वलित करें।
- कंडे को पीतल या तांबे के पात्र में रखें।
- बालाजी महाराज के सामने शीश झुकाए।
- कंडे पर थोड़ा सा देसी घी डालकर माचिस से उस पर अग्नि प्रज्वलित करें।
- अब एक सीधे हाथ में बताशा लेकर बालाजी महाराज की जय बोल कर कंडे पर छोड़े।
- इसी तरह दूसरा बताशा लेकर श्री प्रेतराज सरकार की जय बोल कर कंडे पर छोड़ दे।
- इसी प्रकार तीसरा बताशा भैरो बाबा की बोल कर छोड़ दे।
- अगर कंडे से कहीं और बताशा गिर जाये तो उसे फिर उठाना नहीं है। ना ही उसकी जगह दूसरा बताशा कंडे में छोड़ना है।
- अब एक जोड़ी लौंग लेकर उसका फूल घी मे डुबोकर बालाजी महाराज की जय फिर दूसरा जोड़ा श्री प्रेत राज सरकार की जय बोल कर और तीसरा भैरो बाबा की जय बोल कर कंडे में छोड़ दें।
- बताशो की तरह गिरी हुई लौंग उठानी नहीं है।
- इसके बाद इसी प्रकार से जय बोलते हुए तीन चम्मच देसी घी बारी बारी से कंडे पर छोड़े।
- अब जो भी आप बालाजी महाराज को भोग लगाना चाहते हैं उसका कुछ अंश कंडे पर छोड़ दें।
- अंत में हथेली में जल लेकर जय बोलते हुए कंडे के चारो ओर घुमाते हुए जमीन पर ही तीन बार जल छोड़े।
- भोग के समक्ष हाथ जोड़कर अपना शीश झुकावें।
इस प्रकार आपकी भोग लगाने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। जिस चीज़ का आपने भोग लगाया हो उसे आप प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।
जय श्री बालाजी महाराज
जय श्री प्रेत राज सरकार
जय श्री भैरव जी महाराज