बालाजी महाराज श्री राम के सेवक थे या सीता के ?

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एक दिन की बात है श्री रामचन्द्र जी और सीता जी बैठे हुए थे। आपस में बातें हो रही थी। बालाजी महाराज की चर्चा छिड़ी तो श्री राम जी ने कहा – “हनुमान मेरा बड़ा भक्त है।” सीता जी ने कहा – “अजी वाह! आपने यह कैसे जाना ? वह तो मेरा भक्त है।” श्री राम जी हंसने लगे और बोले – “तुम्हें अभी क्या मालूम, मुझसे बढ़कर वह किसी को नहीं मानता।”

सीता जी मुस्कुराई और बोली – “आप धोखे में हैं, वह जितना मुझे मानता है उतना किसी को नहीं। ” श्री राम जी बोले – “तो इसमे झगड़ने की कौन सी बात है ? पूछ लिया जाए। ” सीता जी ने कहा – अच्छी बात है। आज ही जब वे आएंगे तब मैं एक चीज मांगूगी। उसी समय आप भी कोई चीज मांगिएगा। जिसकी चीज पहले आ जाए उसकी जीत पक्की हो जाएगी।” श्री राम चन्द्र जी ने कहा – ” पक्की रही। ”

थोड़ी देर में बालाजी महाराज भी वहां पहुंच गए। राम और सीता जी दोनों ने प्रसन्न होकर उनका स्वागत किया। बालाजी महाराज एक हाथ से श्री राम चन्द्र भगवान् का और एक हाथ से सीता माता पैर दबाने लगे। सीता जी ने राम जी की ओर देखा और आंख से कुछ इशारा किया। भगवान् श्री राम जी बोले – ” हनुमान! तुम मेरे भक्त हो न ?” बालाजी महाराज पहले घबरा गए लेकिन फिर समझ गए कि आज दाल में कुछ काला है। वे बड़े बुद्धिमान थे। सोचकर बोले – “क्या पूछा ? आपका भक्त! यानी कि राम का भक्त! नहीं मै राम का भक्त नहीं हूं।”

सीता जी ने समझा कि मेरी विजय हो गई – ” हनुमान मेरा भक्त है। ” यह सोचकर वह हंसने लगी। उन्होंने राम जी की ओर देखा। श्री राम जी बेचारे शर्मसार हो गए। राम जी ने अपना पैर हटा लिया। बालाजी महाराज ने श्री रामजी का पैर छोड़ दिया। तब सीता जी ने पूछा -” तुम तो मेरे भक्त हो हनुमान!” बालाजी महाराज ने कहा – आपका भक्त ? यानि कि सीता माता का भक्त ? ऊँ हूँ मैं सीता का भी भक्त नहीं हूं। ”

सीता जी आश्चर्य में पड़ गयी। राम जी हंसने लगे। सीता जी ने भी अपना पैर हटा लिया। बाला जी ने उनका भी पैर छोड़ दिया और दोनों के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। श्री रामजी और सीता माता दोनों चकित हो गए कि -” यह न तो राम जी का ही भक्त हैं और न ही सीता का तो फिर किसका भक्त है ?”

श्री राम जी ने फिर पूछा – ” तो तुम मेरे भक्त नहीं हो ?” बालाजी महाराज ने सिर हिलाकर कहा – “ऊँ हूँ।” सीता जी ने पूछा – “मेरे भी भक्त नहीं हो।” इस बार बालाजी ने – “ऊँ हूँ।” कह दिया।

तब श्री राम जी ने झुंझला कर कहा -” तो फिर तुम किसके भक्त हो हनुमान ? इतनी सेवा किसलिए करते हो ? यदि तुम दूसरे के भक्त हो तो तुम उसके साथ विश्वासघात कर रहे हो। उसकी सेवा न करके हमारी सेवा करते हो। अच्छा, अब ठीक ठीक बता दो कि तुम किसके भक्त हो ? ”

बालाजी महाराज ने हंसते हुए कहा – “न मैं श्री राम का भक्त हूँ न ही सीता मैया का बल्कि सीताराम का भक्त हूँ। ” इस उत्तर को सुनकर दोनों बड़े प्रसन्न हुए और श्री राम जी बोले -” हनुमान जितना तुममें बल है, उतनी ही बुद्धि भी है किन्तु आज तुम्हारी बुद्धि न चलेगी हमे तो आज ही फैसला करना है।”

तब सीता जी ने कहा -” हनुमान! प्यास लगी है, एक गिलास पानी ले आओ। ” बाला जी बोले – ” अभी लाया लाया मैया!” कह कर पानी लेने चल दिए। इतने में ही श्री राम जी बोल उठे -” हनुमान! बड़ी गर्मी है, जल्दी से पंखा लाकर हवा करो नहीं तो मैं बेहोश हो जाऊंगा। ”

इतना सुनते ही बालाजी महाराज वहीं ठिठक गए और सोचने लगे कि आज भगवान् परीक्षा लेना चाहते हैं कि -” मैं किसकी आज्ञा का अधिक पालन करता हूं।” बालाजी ने कहा – “भगवन्! माता के लिए पानी ले आऊं तब आपको पंखा लाकर हवा करूंगा। ” भगवान् राम जी ने कहा -” तब तक तो मैं व्याकुल हो जाऊंगा। यदि तुम सेवक हो तो अभी पंखा लाकर हवा करो।” अब हनुमान जी ने सीता जी से कहा – “माँ! राम जी को बड़ी गर्मी लग रही है कहिए तो पंखा लाकर हवा कर दूँ। तब आपको पानी पिलाऊं। ” सीता जी ने गले पर हाथ रख कर कहा – ” हनुमान! प्यास के मारे होंठ सूखे जा रहे हैं। अब अधिक नहीं रहा जाता। जल्दी पानी पिलाओ। ”

बालाजी महाराज सारा मामला समझ गए और मुस्कुराने लगे। फिर कुछ देर में बड़ी देर जोर से बोले – ” श्री सीता राम की जय ! ” यह कहकर वहीं खड़े खड़े अपनी दोनों भुजाएं बढ़ाने लगे। श्री राम और सीता देख रहे थे। बालाजी महाराज खड़े खड़े हंस रहे थे। थोड़ी देर में एक हाथ में पंखा और एक हाथ में पानी भरा गिलास आ गया। एक हाथ से राम जी को पंखा झलने लगे और दूसरा गिलास वाला हाथ सीता जी की ओर बढ़ा दिया। यह देखकर श्री राम जी और सीता जी बहुत प्रसन्न हुए। भक्त वत्सल भगवान् भक्त के प्रेम को देखकर आँखे मूंदकर प्रेम में मग्न हो गए। सीता जी ने दौड़कर बालाजी महाराज के सिर पर हाथ रखा और कहा – “बेटा! अजर अमर होओ। संसार में तुम्हारी भक्ति से ही हम दोनों प्रसन्न होंगे।” बालाजी ने मस्तक नीचे कर लिया। भगवान् श्री राम जी ने नेत्र खोल कर बालाजी महाराज को अपने हृदय से लिपटा लिया। बालाजी महाराज जल्दी से एक हाथ राम के पैर पर और एक हाथ सीता जी के पैर पर रख कर दण्ड की तरह चरणों में गिर पड़े।

जय श्री राम

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